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कैसे बचाएँ बेटियाँ

  प्रिय पाठक गण,         बेटी है तो ही प्रकृति परिपूर्ण है लेकिन अपराधों के  बढ़ते संसार में, बेटियों पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए तो हृदय घबरा जाता है। दिन प्रतिदिन हो रही घटनाएँ अंतरात्मा को कचोट देती हैं। जब भी यह घटनाएँ घटित होती हैं,  हृदय में बिजली सी कौंध उठती है।         इन घटनाओं को पढ़कर और सुन कर अपने दुखी मन से बार-बार प्रश्न पूछती हूंँ कि क्या बेटियों को बचाया जाना चाहिए?यदि हाँ, तो उनकी रक्षा के लिए कड़े कानून क्यों नहीं बनते? क्यों अपराधियों को इस घोर अपराध की सजा नहीं दी जाती है? क्यों बेटी अपने न्याय के लिए कई-कई साल तक भटकती रहती है?  कैसे बचाएँ बेटियाँ, कैसे बचाएँ बेटियाँ ......  जहाँ हाथरस जैसा कांड हो,  बर्बरता बढ़कर प्रचंड हो । बेटी की आबरू खंड-खंड हो।। कैसे बचाएँ बेटियाँ ,कैसे बचाएँ बेटियाँ.... जब अंत निर्भया जैसा हो.... जहाँ मानवता शर्मसार हो , बेटी की इज्ज़त तार हो । निर्दयता की  रेखा पार हो ।।  कैसे बचाएँ बेटियाँ ,कैसे बचाएँ बेटियाँ .....  जहाँ डॉक्टर अनसेफ हो..... चीत्कार और पुकार हो,  बस हैवानियत की भरमार हो। कैसे बचाएँ बेटियाँ ,कैसे बचाएँ बेटियाँ  जेवर

सच्चा साथी

  प्रिय पाठक गण  यह मानव जीवन बहुत कठिन है। जब से मानव के जीवन की शुरुआत होती है, तब से उसके जीवन में विभिन्न लोगों का आना जाना लगा रहता है। किंतु उन लोगों में से एक दो ही लोग ऐसे होते हैं, जो दोस्ती को बहुत शिद्दत से निभाते हैं ।  बाकी अन्य लोग आपका भरोसा तोड़ देते हैं। जिन पर हम भरोसा करते हैं, जिन पर हम विश्वास करते हैं ,जो हमें अपने लगते हैं, उनमें से ही कुछ विश्वासघाती निकल जाते हैं ।  लेकिन जिनकी हम परवाह नहीं करते ,उनमें से कुछ हमारा भला चाहने वाले, हमारे बारे में सोचने वाले , और हमारे हमदर्दी होते हैं। लेकिन कई बार हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर किसे अपना सच्चा दोस्त माने ? सच्चे दोस्त की परिभाषा क्या है?   आपके सुख के पलों में तो हर कोई आप का साथ निभाता है और आप से घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए मौके ढूँढता रहता है । लेकिन जैसे ही आपके ऊपर संकट आता है, आप विपदाओं से घिर जाते हैं । तो वही दोस्त आपका साथ छोड़ कर, आप से मुँह मोड़ कर, बहुत दूर चले जाते हैं । लेकिन कभी गौर फरमाइएगा एक दो लोग ऐसे जरूर होते हैं जो दुख के पल में आपका साथ निभाते हैं।  इस कविता के माध्यम से सच्चे साथ

ईश्वर के अस्तित्व की खोज

  प्रिय पाठक गण,  जब भी हम कभी जीवन में निराश होते हैं,  दुखी होते हैं या हमारे कार्य पूर्ण होने में बाधा आती है, तो हम सारा दोष ईश्वर को ही दे देते हैं और साथ में यह भी कहते हैं कि ईश्वर हैं ही नहीं । परंतु  क्या कभी आपने बड़े ध्यान से प्रकृति को निहारा है ? जब भी आपके मन में यह प्रश्न उठे कि ईश्वर हैं या नहीं एक बार प्रकृति के सानिध्य में अवश्य जाइएगा ।   इस प्रकार की दुविधा मेरे मन में भी कई बार हुई है ईश्वर का अस्तित्व कहाँ है , ईश्वर हैं या नहीं आदि प्रश्न मेरे मन में भी कई बार जगे हैं लेकिन जब भी मैंने प्रकृति को निहारा ,मैंने प्रकृति को ध्यान से देखा, तो प्रकृति के हर कण-कण में मुझे ईश्वर का रूप ही नजर आया। मेरी असमंजस की स्थिति को प्रकृति ने दूर कर दिया। भले ही हम ईश्वर को साक्षात रूप में नहीं देख पाते परंतु हम उन्हें महसूस जरूर कर पाते हैं।  मैं अपनी दुविधा और असमंजस की स्थिति को कविता के रूप में प्रस्तुत कर रही हूंँ मेरी कविता को पढ़ने के बाद आप ही मुझे उत्तर दीजिएगा कि क्या वास्तव में ईश्वर हैं? मेरे कल्पित मन पर तेरी ही धुन सवार है ।  सार्थक है तू ,पर फिर भी निराधार है।।  ब

विश्व शांति दिवस Vishwa Shanti Diwas

  प्रिय पाठक गण,           21 सितंबर को विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसकी शुरुआत 1981 में हुई थी। प्रथम बार विश्व शांति दिवस 1982 में मनाया गया। सितंबर का तृतीय मंगलवार इस दिवस के लिए सुनिश्चित किया गया। सन 2001 में कुछ परिवर्तन किया गया और तृतीय मंगलवार के स्थान पर यह 21 सितंबर को मनाया जाने लगा । तब से ही हम प्रतिवर्ष 21 सितंबर विश्व शांति दिवस के रूप में मनाते हैं ।           कबूतर को संदेशवाहक माना जाता है। अतः विश्व शांति दिवस पर श्वेत कपोत शांति का संदेशवाहक बनाकर उड़ाया जाता है।   आप सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि प्रति वर्ष  धर्म, जाति के आधार पर जगह जगह दंगे होते रहते हैं। जहाँ हम विश्व शांति की बात कर रहे हैं, वहाँ इन दंगों को  रोककर शांति की स्थापना करना ही हमारा ध्येय है । धर्म और जाति के आधार पर बरगलाने वाले लोग ,भड़काने वाले लोग,अशांति फैलाने वाले लोग, सच्चे देशभक्त नहीं हो सकते।       इस समस्त जानकारी को एक कविता के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह कविता जहाँ विश्व शांति दिवस से जुड़े हुए तथ्यों से आपको अवगत कराएगी। वहीं शांति की स्थापना करने के लिए आप को

शिक्षक की विधार्थियों से आस

प्रिय पाठक गण,  बदलते हुए परिवेश में जहाँ शिक्षक का सम्मान कम होता जा रहा है। शिक्षक को केवल पूँजी पर ध्यान केंद्रित करने वाला माना जा रहा है,  परंतु ऐसा कदापि नहीं है। प्रत्येक गुरु अपने शिष्य को सफलता के शिखर पर बैठा हुआ देखना चाहता है । प्रत्येक छात्र की आर्थिक, मानसिक, शारीरिक हर प्रकार की क्षमता तथा अक्षमता का गुरु के द्वारा ध्यान रखा जाता है। गुरु छात्रों को उनकी अक्षमताओं से उभारकर कर प्रोत्साहित करता है तथा जीवन में सफल होने, आगे बढ़ने, निरंतर सच्चाई के रास्ते पर चलने,मानवीय गुणों का विकास करने आदि पर बल देता है।   आज का शिक्षक भी पूर्व की तरह अपने शिष्यों को सफल बनाने की इच्छा रखता है परंतु आज का शिक्षक कुछ हाथों की कठपुतली बन गया है।  परंतु आज भी वह पूर्ण निष्ठा से अपने विद्यार्थियों के हुनर को निखार कर, उनको सर्वगुण संपन्न बनाने का निरंतर प्रयास करता रहता है और उनको सच्चा मानव बनाना ही उसके जीवन का उद्देश्य है।  इस भावाभिव्यक्ति को  कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूँ। मैं उम्मीद करूँगी कि आप वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसको सच महसूस करेंगे।  आओ मित्रो तुम्हें बताऊँ, शिक्षक

Shardh Mas ka mahatva

  प्रिय पाठक गण,  जैसा कि आप सभी जानते हैं कि श्राद्ध मास का कृष्ण पक्ष हमारे पितरों को समर्पित होता है। इन 16 दिनों में हम अपने पितरों को याद करते हैं। उन्हें तिलांजलि देते हैं तथा उन्हें भोजन समर्पित करते हैं।भोजन समर्पित करने का मुख्य माध्यम इन दोनों काग अर्थात  कौए को माना जाता है। कहा जाता है कि इस पक्ष में दान,धर्म, दूसरों की मदद करना आदि शुभ रहता है क्योंकि इसका शुभ-लाभ हमारे पितरों तक पहुँचता है और उनकी आत्मा की तृप्ति होती है। विवाह,शुभ संस्कार आदि में सर्वप्रथम पितृ पक्ष का ही स्मरण किया जाता है ताकि उनके आशीर्वाद से सभी दुखों और क्लेशों का अंत किया जा सके । इसी पर आधारित, पितरों को समर्पित, श्राद्ध मास का महत्व बताते हुए एक कविता आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रही हूँ। मैं आशा करती हूँ कि आपको मेरी यह कविता पसंद आएगी ।  श्राद्ध मास का महत्व याद नहीं रख पाते हैं , हम अपने पुरखों की गाथा ।  श्राद्ध मास में काग भोज,हमें उनकी याद दिलाता।।  उनके जीवन संघर्षों से ही तो, हम आबाद हुए।  पराधीनता की जंज़ीरों से भी, हम आज़ाद हुए ।।  अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को, आओ मिलकर करें नमन।  पितृदोष और

Hindi Diwas Pr Kavita

  हिंदी  दिवस की  हार्दिक बधाइयाँ।     प्रिय पाठक गण 14 सितंबर को हम सभी हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। हिंदी हमारी मातृभाषा है।  हिंदी के सम्मान में, मैं हिंदी दिवस पर आधारित एक कविता प्रस्तुत कर रही हूँ। मैं उम्मीद करूँगी कि यह कविता आपको हिंदी बोलने, हिंदी का सम्मान करने तथा हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी ।  हिंदी हमारी शान है। हिंदी हमारी पहचान है। हिंदी से हम हैं, और हम से ही हिंदुस्तान है। हिंदी ही वह भाषा है,  जो बालक को स्वर देती है। भावों को जागृत करती है,  मानवता विकसित करती है। हिंदी नहीं तो, भावनाओं का  विकास भी संभव नहीं। हिंदी नहीं तो,देश का  उत्थान भी संभव नहीं। हिंदी हमारी जड़ है, हिंदी ही संविधान है।  हिंदी हमारे देश की, समृद्धि और पहचान है। आओ मिलकर हिंदी की प्रतिष्ठा को और बढ़ाएँ। कुछ हम बोलें कुछ तुम बोलो मिलकर आगे ले जाएँ ।  नीरू शर्मा

Meri Bitiya ka Bachpan

 प्रिय पाठक गण,  आज की इस प्रस्तुति में, मैं अपनी नन्हीं सी परी,प्यारीसी, राजदुलारी सी,गुड़िया रुचिका गॉड के जन्म से लेकर उसकी 3 वर्ष तक की आयु को कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूँ।   मैं आशा करूँगी कि मेरे भावों को पढ़कर आप अपने भावों को उनसे जोड़ पाएँगे।  मेरी बिटिया का बचपन  कोमल और नाजुकता का, जब किया भुजाने आलिंगन। होठों की लाली, केश कपोलों का चुंबन।।  निद्र मग्नता और स्वप्नों के भावों का बाहर आना।  टीके की पीड़ा में भी सहलाने पर मुस्काना।।  अपना दुख,आतुरता ,बेताबी के शब्द नहीं।  माँ की छाया, पिता प्रेम बिन और नहीं है स्वर्ग कहीं।।  नन्हे-नन्हे हाथों में सख्त खिलौनों की अकड़न।  घुटनों का छिलना, बाबा स्वर और दंत बीच का प्रस्फुटन।।  अनामिका और मध्यिका का यूँ बार-बार मुँह में जाना।  लाख मना करने पर भी उसकी बेचैनी का बढ़ जाना ।।  नए-नए वस्त्रों का बार-बार बदला जाना।  होठों पर लाली ,कर्ण मणि और माथे पर चंद्रिका लगाना।।  साज और श्रंगार निरंतर उसके ख्वाबों के गठबंधन।  नए-नए वस्त्रों में आकर, करना सबका अभिनंदन।।  ममता के साए से विलग होने पर उसका निरंतर झल्लाना।  मातृप्रेम के मिलते ही