कैसे बचाएँ बेटियाँ
प्रिय पाठक गण, बेटी है तो ही प्रकृति परिपूर्ण है लेकिन अपराधों के बढ़ते संसार में, बेटियों पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए तो हृदय घबरा जाता है। दिन प्रतिदिन हो रही घटनाएँ अंतरात्मा को कचोट देती हैं। जब भी यह घटनाएँ घटित होती हैं, हृदय में बिजली सी कौंध उठती है। इन घटनाओं को पढ़कर और सुन कर अपने दुखी मन से बार-बार प्रश्न पूछती हूंँ कि क्या बेटियों को बचाया जाना चाहिए?यदि हाँ, तो उनकी रक्षा के लिए कड़े कानून क्यों नहीं बनते? क्यों अपराधियों को इस घोर अपराध की सजा नहीं दी जाती है? क्यों बेटी अपने न्याय के लिए कई-कई साल तक भटकती रहती है? कैसे बचाएँ बेटियाँ, कैसे बचाएँ बेटियाँ ...... जहाँ हाथरस जैसा कांड हो, बर्बरता बढ़कर प्रचंड हो । बेटी की आबरू खंड-खंड हो।। कैसे बचाएँ बेटियाँ ,कैसे बचाएँ बेटियाँ.... जब अंत निर्भया जैसा हो.... जहाँ मानवता शर्मसार हो , बेटी की इज्ज़त तार हो । निर्दयता की रेखा पार हो ।। कैसे बचाएँ बेटियाँ ,कैसे बचाएँ बेटियाँ ..... जहाँ डॉक्टर अनसेफ हो..... चीत्कार और पुकार हो, बस हैवानियत की भरमार हो। कैसे बचाएँ बेटियाँ ,कैसे बचाएँ बेटियाँ जेवर