Meri Bitiya ka Bachpan
प्रिय पाठक गण,
आज की इस प्रस्तुति में, मैं अपनी नन्हीं सी परी,प्यारीसी, राजदुलारी सी,गुड़िया रुचिका गॉड के जन्म से लेकर उसकी 3 वर्ष तक की आयु को कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूँ।
मैं आशा करूँगी कि मेरे भावों को पढ़कर आप अपने भावों को उनसे जोड़ पाएँगे।
मेरी बिटिया का बचपन
कोमल और नाजुकता का,
जब किया भुजाने आलिंगन।
होठों की लाली, केश कपोलों का चुंबन।।
निद्र मग्नता और स्वप्नों के भावों का बाहर आना।
टीके की पीड़ा में भी सहलाने पर मुस्काना।।
अपना दुख,आतुरता ,बेताबी के शब्द नहीं।
माँ की छाया, पिता प्रेम बिन और नहीं है स्वर्ग कहीं।।
नन्हे-नन्हे हाथों में सख्त खिलौनों की अकड़न।
घुटनों का छिलना, बाबा स्वर और दंत बीच का प्रस्फुटन।।
अनामिका और मध्यिका का यूँ बार-बार मुँह में जाना।
लाख मना करने पर भी उसकी बेचैनी का बढ़ जाना ।।
नए-नए वस्त्रों का बार-बार बदला जाना।
होठों पर लाली ,कर्ण मणि और माथे पर चंद्रिका लगाना।।
साज और श्रंगार निरंतर उसके ख्वाबों के गठबंधन।
नए-नए वस्त्रों में आकर, करना सबका अभिनंदन।।
ममता के साए से विलग होने पर उसका निरंतर झल्लाना।
मातृप्रेम के मिलते ही उसके हृतल का खिल जाना।।
सहपाठी के खाद्य टिफिन में उसका यूँ झाँका जाना।
कल मैगी,सैंडविच,बर्गर देना मुझको आकर बतलाना।।
पापा के ऑफिस से आने पर पात्र नीर का ले आना।
पात्र हाथ में लिए ठुमकना और नीर का छलकाना।।
क्या लाए हो ऑफिस से बार-बार पूछा जाना?
कविता जारी रहेगी..........
नीरू शर्मा
Very nice poem...meri bitiya Ka bachpan...loved it simply
जवाब देंहटाएंBest poem
हटाएंGood composition. Keep it up
जवाब देंहटाएंWah
जवाब देंहटाएंGood one
जवाब देंहटाएंGood one
जवाब देंहटाएंWah bahut achchha
जवाब देंहटाएंशब्दों का चयन बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं*प्रस्फुटन*
शब्दों का चयन बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं*प्रस्फुटन*