ईश्वर के अस्तित्व की खोज

 प्रिय पाठक गण, 


जब भी हम कभी जीवन में निराश होते हैं,  दुखी होते हैं या हमारे कार्य पूर्ण होने में बाधा आती है, तो हम सारा दोष ईश्वर को ही दे देते हैं और साथ में यह भी कहते हैं कि ईश्वर हैं ही नहीं । परंतु  क्या कभी आपने बड़े ध्यान से प्रकृति को निहारा है ? जब भी आपके मन में यह प्रश्न उठे कि ईश्वर हैं या नहीं एक बार प्रकृति के सानिध्य में अवश्य जाइएगा ।  

इस प्रकार की दुविधा मेरे मन में भी कई बार हुई है ईश्वर का अस्तित्व कहाँ है , ईश्वर हैं या नहीं आदि प्रश्न मेरे मन में भी कई बार जगे हैं लेकिन जब भी मैंने प्रकृति को निहारा ,मैंने प्रकृति को ध्यान से देखा, तो प्रकृति के हर कण-कण में मुझे ईश्वर का रूप ही नजर आया। मेरी असमंजस की स्थिति को प्रकृति ने दूर कर दिया। भले ही हम ईश्वर को साक्षात रूप में नहीं देख पाते परंतु हम उन्हें महसूस जरूर कर पाते हैं। 

मैं अपनी दुविधा और असमंजस की स्थिति को कविता के रूप में प्रस्तुत कर रही हूंँ मेरी कविता को पढ़ने के बाद आप ही मुझे उत्तर दीजिएगा कि क्या वास्तव में ईश्वर हैं?


मेरे कल्पित मन पर तेरी ही धुन सवार है । 
सार्थक है तू ,पर फिर भी निराधार है।। 


बहती जल की बूँद - बूँद में क्या तेरा वर्चस्व समाया है ? 
उगते सूरज की किरणों ने क्या  तेरा अस्तित्व ही पाया है? 


बढ़ते चंदा को देखूँ तो मन मेरा भरमाया है । 
फड़फड़ाते पंछी को, अंबर में उड़ते पाया है।। 


भँवरे के गुनगुन गीतों में, क्या तेरा राग समाया है?
वृक्षों पर उगती कलियों ने क्या तेरा स्पर्श पाया है?


केकी के नीले पंखों को क्या तूने ही रचाया है?
नील गगन के मेघों को फिर किसने उकसाया है? 


 हर स्थल पर देखूँ तो तेरा ही रूप समाया है । 
अस्तित्व समर्पित करके भी खुद को निराधार बनाया है।


मेहंदी के मिश्रित पत्रों में यह किसने रंग चढ़ाया है? 
सागर की गहरे मंथन को किसने आधार बनाया है? 


 माह श्रवण के मेघों में, फुहारों को लहराया है। 
बालक के मीठे बोलों में सत्य कहाँ से आया है।। 


संकट के क्षण में माँ  का स्वर क्या तूने ही रमाया है? 
जीवन रूपी लहरों में क्या नाविक तू ही आया है? 
 

नीरू शर्मा
(©) 




Dear reader,



Whenever we are ever disappointed in life, unhappy or interrupted in the completion of our work, then we give all the blame to God and together we also say that there is no God. But have you ever looked at nature with great attention? Whenever the question arises in your mind whether God is there or not, one will definitely go into the context of nature.

This type of dilemma has occurred many times in my mind, where is the existence of God, God is there or not, etc. Questions have also awakened in my mind but whenever I looked at nature, I looked at nature carefully, then nature I saw the form of God in every particle. Nature has overcome my confusion. Even though we are not able to see God in person but we can feel them.

I am presenting my dilemma and dilemma in the form of a poem. After reading my poem you will answer me, is there really God?

Neeru Sharma

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